हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में वन भूमि अतिक्रमण और कानूनी प्रक्रियाओं में हो रही अनियमितताओं पर गंभीर संज्ञान लिया है। न्यायालय में सुनवाई के दौरान यह पाया गया कि पुराने अतिक्रमण मामलों में उचित तरीके से कार्रवाई नहीं की जा रही है, जिसके कारण मामलों के निस्तारण में अनावश्यक देरी हो रही है। इस पर कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
न्यायालय की खंडपीठ, जिसमें न्यायमूर्ति विवेक सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति बिपिन चंद्र नेगी शामिल थे, ने तहसीलदार भुंतर, जिला कुल्लू को छठे प्रतिवादी और सत्या देवी को सातवें प्रतिवादी के रूप में मामले में जोड़ने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने इन दोनों को नोटिस जारी कर मामले में अपने हलफनामे के साथ दो सप्ताह के भीतर सभी तथ्यों और परिस्थितियों की जानकारी देने के निर्देश दिए हैं।
खंडपीठ ने विशेष रूप से राज्य सरकार के अधिकारियों को चेतावनी दी और कहा कि सरकारी वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए जाएं। कोर्ट ने संभागीय वन अधिकारी और तहसीलदार भुंतर को अपने अधिकार क्षेत्र में वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए किए गए कार्यों की विस्तृत जानकारी अदालत में प्रस्तुत करने के आदेश दिए हैं।
इस मामले में जांच के दौरान यह भी सामने आया कि कई मामलों में सरकार की ओर से तय की गई कानूनी प्रक्रियाओं का ठीक से पालन नहीं किया गया, जिससे अतिक्रमण हटाने में देरी हो रही है। कोर्ट ने मामले से जुड़ी सभी विभागीय रिपोर्ट्स का विशेष रूप से मूल्यांकन करने का आदेश दिया है।
मामले की अगली सुनवाई 16 सितंबर को होगी, जब अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि इन मुद्दों पर उचित कार्रवाई की जा रही है और यदि किसी भी प्रकार की लापरवाही पाई जाती है तो जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
यह फैसला हिमाचल प्रदेश में वन भूमि अतिक्रमण पर नियंत्रण के लिए महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, और यह सुनिश्चित करेगा कि कानून के तहत कार्रवाई में कोई भी अनियमितता न हो।
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