नई दिल्ली: दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्तियों अमेरिका और चीन के अधिकारियों के बीच 12 मई को जेनेवा में एक समझौता हुआ। इसमें दोनों पक्षों ने एकदूसरे पर हाल में लगाए गए टैरिफ में कटौती करने पर सहमत हो गए। यह व्यवस्था 90 दिन के लिए है। चीन ने इसे देश के लिए एक बड़ी सफलता बताया लेकिन उसे अच्छी तरह पता है कि आगे का रास्ता मुश्किलों भरा है। अमेरिका और चीन के बीच हुए समझौते की स्याही अभी सूखी भी नहीं है और दोनों पक्षों में एकदूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं। इससे पता चलता है कि आने वाले दिनों में दोनों देशों के रिश्तों में और खटास आ सकती है। अमेरिका और चीन के बीच भरोसे की भारी कमी है और दोनों एकदूसरे को अपने लिए खतरा मानते हैं। यही वजह है कि चीन ने आगे की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है। चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने अमेरिका पर जेनेवा में हुई बातचीत को कमजोर करने का आरोप लगाया है। इसकी वजह यह है कि ट्रंप प्रशासन ने अमेरिकी कंपनियों को चीनी कंपनी हुआवेई द्वारा बनाए गए एआई चिप्स का इस्तेमाल नहीं करने को कहा है। चीन का कहना है कि अमेरिका चीन को दबाने के लिए एक्सपोर्ट कंट्रोल का गलत इस्तेमाल कर रहा है। साथ ही चीन ने फेंटानिल के मुद्दे पर भी अपना रुख बरकरार रखा है। उसका कहना है कि यह ड्रग अमेरिका की समस्या है, चीन की नहीं। चीन का आरोपइन चीजों से साफ है कि चीन अमेरिका के साथ होने टैरिफ डील पर होने वाली बातचीत में आसानी से झुकने वाला नहीं है। इससे भले ही चीन को व्यापार में नुकसान हो सकता है, लेकिन वह अपनी इमेज और हितों को खतरे में नहीं डालना चाहता। अमेरिका और चीन के बीच रणनीतिक मुकाबला अभी भी जारी है। अमेरिका अब चीन को एक खतरे के रूप में देखता है। उसने चीन की अमेरिकी टेक्नोलॉजी और निवेश तक पहुंच को कम करने के लिए कदम उठाए हैं। अमेरिका ने एशिया में अपने सहयोगी देशों को भी मजबूत किया है। चीन का कहना है कि ऐसा करके अमेरिका उसे घेरने की कोशिश कर रहा है।पिछले महीने जब ट्रंप ने दुनिया भर के व्यापारिक भागीदारों पर रेसिप्रोकल टैरिफ लगाने की घोषणा की तो चीन ने भी अमेरिकी सामान पर टैरिफ बढ़ा दिया था। उसका रुख इस मामले में बाकी देशों से अलग था। ट्रंप ने चीन को छोड़कर दूसरे देशों को टैरिफ में 90 दिन की छूट दी तो चीन पीछे नहीं हटा। उसने खुद को एक ऐसे वैश्विक नेता के रूप में पेश किया जो एक धमकाने वाले के खिलाफ खड़ा है। जानकारों का कहना है कि चीनी नेताओं को यह विश्वास हो गया होगा कि उनकी अमेरिकी रणनीति सही रास्ते पर है। ड्रैगन की चालचीन के लिए यह बहुत जरूरी है कि उसके सबसे बड़े एक्सपोर्ट मार्केट अमेरिका के लिए टैरिफ कम हो जाएं और फिर से न बढ़ें। एक अनुमान के मुताबिक अगर मौजूदा कम टैरिफ बने रहते हैं, तो इससे अमेरिका-चीन ट्रेड आधा हो सकता है। इससे चीन की विकास दर 1.6% तक कम हो सकती है और 40 से 60 लाख नौकरियां जा सकती हैं। ट्रंप का कहना है कि चीन को $300 अरब के व्यापार घाटे को कम करने के लिए उपाय करने चाहिए। उनका मानना है कि अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग के पतन के लिए चीन जिम्मेदार है।इस बीच चीन ने अमेरिका की चुनौती से निपटने के लिए आगे की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। चीन के पास अपनी ताकत है। रेयर अर्थ एक्सपोर्ट पर उसका कड़ा नियंत्रण है। इनका यूज ऑटोमोबाइल से लेकर एयरोस्पेस और सैन्य उद्योगों में होता है। जानकारों का कहना है कि टैरिफ का चीन की अर्थव्यवस्था पर असर तेज होगा लेकिन अमेरिका के मुकाबले चीन ज्यादा समय तक व्यापार युद्ध सह सकता है। यही वजह है कि चीन अमेरिका के साथ लंबे समय तक चलने वाले तनाव के लिए तैयारी कर रहा है। चीन को फायदाचीन ने की घरेलू खपत को बढ़ावा देने और अन्य एक्सपोर्ट मार्केट का विस्तार करने की कोशिशों को तेज कर दिया है। चीन की सरकार अमेरिकी ग्राहकों के नुकसान की भरपाई के तरीके खोज रही है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनके अधिकारियों ने लैटिन अमेरिका से लेकर यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया तक के भागीदारों को लक्षित करते हुए कूटनीति शुरू कर दी है। वे चीन को एक जिम्मेदार भागीदार के रूप में पेश कर रहे हैं और सहयोग बढ़ाने या मुक्त व्यापार का विस्तार करने की पेशकश कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि अगर ट्रंप इस टैरिफ वॉर को जारी रखते हैं, तो इससे चीन को बहुत रणनीतिक फायदा होगा।
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