वॉशिंगटन: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस्माइल रॉयर और शेख हमजा यूसुफ को धार्मिक स्वतंत्रता आयोग के तहत वाइट हाउस के नवगठित सलाहकार बोर्ड ऑफ ले लीडर्स में नियुक्ति दी है। ट्रंप प्रशासन के शुक्रवार को लिए इस फैसले की जानकारी सामने आते ही विवाद खड़ा हो गया है, इसकी वजह इस्माइल और हमजा का इतिहास है। इस्माइल आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के कैंप में ट्रेनिंग ले चुका है। वहीं दूसरे सदस्य यूसुफ पर भी आतंकी समूहों से संबंध रखने के आरोप रहे है। ऐसे में इस्माइल रॉयर और शैख हमजा युसुफ को वाइट हाउस पैनल में शामिल करने से अमेरिकियों में गुस्सा है। यहां तक कि ट्रंप के करीबी सहयोगियों ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए आतंक के मुद्दे पर इसे अमेरिकी राष्ट्रपति का 'ब्लंडर' कहा है।ट्रंप से जुड़े धार्मिक स्वतंत्रता पैनल में शामिल किए गए इस्माइल रॉयर के पाकिस्तान में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा से साल 2000 में ट्रेनिंग ले चुका है और कश्मीर में भारत के खिलाफ आतंक फैलाने का आरोपी है। पूर्व जिहादी कहलाने वाला रॉयर आतंकवाद से संबंधित आरोपों में 13 साल तक जेल की सजा काट चुका है। साल 2003 में रॉयर पर अमेरिका में आंतकवाद फैलाने के आरोप लगे। उस पर अल-कायदा से जुड़े होने का भी आरोप रहा है। इस्माइल को 2004 में 20 साल की सजा सुनाई गई लेकिन 13 साल बाद उसे रिहा कर दिया गया। मुरीदके में रहा था इस्माइलईटी की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2001 में इस्माइल रॉयर और शेख हमजा की जोड़ी ने ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान के मुरीदके की यात्रा की थी। मुरीदके भारत के हालिया ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी भारतीय सेना के निशाने पर रहा था। मुरीदके आतंक के ट्रेनिंग कैंप के लिए दुनियाभर में बगनाम रहा है। यहां ट्रेनिंग पाए आतंकी भारत को निशाना बना चुके हैं।अमेरिकी न्याय विभाग के अभियोग के अनुसार, ये दोनों अन्य लोगों के साथ वर्जीनिया जिहादी नेटवर्क का हिस्सा रहे थे, जिसे 9/11 के हमलों के बाद यूएस फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन ने भंडाफोड़ किया था। लश्कर-ए-तैयबा भारत और अमेरिका में प्रतिबंधित गुट है। यह संगठन 26/11 के मुंबई हमलों में शामिल रहा है। ऐसे में भारतीयों के बीच भी ट्रंप के इस फैसले से नाराजगी है। भारतीय इसे ट्रंप के धोखे की तरह देख रहे हैं।वाइट हाउस पैनल का दूसरा सदस्य शेख हमजा यूसुफ है। यूसुफ पर कट्टरपंथियों की मदद करने और और प्रतिबंधित आतंकी समूहों से संबंध होने के आरोप रहे हैं। ट्रंप प्रशासन के फैसले पर सवाल उठाने वाले में आम लोगों के साथ-साथ पॉलिटिकल एक्टिविस्ट और इन्वेस्टिगेटिव जर्नलिस्ट लारा रूमर भी हैं। उन्होंने इसे ट्रंप का बेहद खराब फैसला कहा है। अमेरिका और आतंक के मामलों पर लिखने वाले कई दूसरे एक्सपर्ट ने कहा है कि ट्रंप के फैसले से अमेरिका के हालिया वर्षों के आतंक विरोधी रुख को तगड़ा झटका लगा है।
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