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इस बार मॉनसून तो अपनी सही चाल चला है, बादल फटने के पीछे... पढ़िए IMD के डायरेक्टर डॉ. महापात्रा का पूरा इंटरव्यू

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इस साल साउथ वेस्ट मॉनसून की शुरुआत समय से काफी पहले हो गई। देश के 95% हिस्से में मॉनसून समय से काफी पहले पहुंचा। देश भर में छाने के बाद जब मॉनसून का विकराल रूप दिखा तो लोग दहशत में आ गए। आपदाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। पहाड़ी राज्यों से लेकर पंजाब तक में बहुत नुकसान हुआ है। मॉनसून की इस बिगड़ी चाल पर भारतीय मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ. मृत्युंजय महापात्रा से NBT की पूनम गौड़ ने बात की। पेश हैं बातचीत के प्रमुख अंश :



इस बार का मॉनसून पैटर्न अब तक किस तरह का रहा है?

हम पहले ही पूर्वानुमान में बता चुके थे कि इस बार मॉनसून सामान्य से 108% अधिक रह सकता है। उसी पैटर्न पर यह चल रहा है। यह जरूर है कि बारिश सभी जगह समान नहीं हुई है। इस बार बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर सिस्टम बना। पहाड़ों में भी वेस्टर्न डिस्टरबेंस बना है। राजस्थान में भी साइक्लोनिक सर्कुलेशन बने हैं। जब ये दोनों-तीनों सिस्टम एक-दूसरे को सपोर्ट करने लगते हैं तो तेज बारिश होती है। यही इस बार भी देखने को मिल रहा है। मॉनसून साइकल की बात करें तो यह 15-15 दिन का होता है। मतलब पंद्रह दिन यह देश के बाकी हिस्सों में सक्रिय रहता है, फिर पंद्रह दिन पहाड़ों पर। इस बार यह साइकल मॉनसून ने फॉलो किया है। इसकी वजह से हर महीने पहाड़ों में भारी बारिश देखने को मिली है।




हिमालय राज्यों में मॉनसून में एक के बाद एक कई बड़ी आपदाएं आई हैं। बादल फटने जैसी घटनाओं में क्या वृद्धि हो रही है?

मॉनसून के दौरान हिमालयन रीजन और पश्चिमी पहाड़ी इलाकों में इस तरह की घटनाएं अधिक होती हैं। बादल फटना भी इस क्षेत्र में नया नहीं है, लेकिन क्लाइमेट चेंज की वजह से यह अधिक हो रहा है। पहाड़ों में ऊपरी इलाकों में जब बारिश होती है तो पानी मलबे के साथ तेजी से बहता हुआ आता है। क्लाइमेट चेंज के असर की वजह से भी बारिश की तीव्रता बढ़ रही है। लेकिन यह समस्या सिर्फ देश की नहीं है। पूरी दुनिया में इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं। ऐसी घटनाओं का दायरा बहुत छोटा होता है। इनमें एक से दो गांव प्रभावित होते हैं। इसलिए इनका पूर्वानुमान भी चुनौती रहता है। अभी हमारे पास वेस्टर्न हिमालयन रीजन में 10 रडार हैं। नॉर्थ-ईस्ट में भी रडार लगाए जा रहे हैं। वेस्ट रीजन में रडार बढ़ाए जा रहे हैं। इससे हम इन घटनाओं से थोड़ा पहले इनकी जानकारी नाउकास्ट में दे सकेंगे। नाउकास्ट हर दो से तीन घंटे में जारी किया जा रहा है। बादल फटने का पूर्वानुमान पूरी दुनिया में कहीं नहीं है, लेकिन भारी बारिश का पूर्वानुमान हम लगा रहे हैं। हिमालयन रीजन में इतनी सारी पहाड़ी दरारें हैं कि दस रडार भी पर्याप्त नहीं हैं। रडार लगाना भी यहां चुनौतीपूर्ण हैं, खासकर ऊपरी पहाड़ियों में। इसके लिए वहां कम्युनिकेशन सिस्टम, बिजली, पानी, सुगम रास्तों की जरूरत पड़ती है। हालांकि मिशन मौसम के जरिए रडारों की संख्या बढ़ाई जा रही है।





बारिश के पैटर्न में क्लाइमेट चेंज की वजह से क्या बदलाव आ रहे हैं?

भारी बारिश बढ़ रही है, रिमझिम जैसी लंबे समय तक चलने वाली धीमी बारिश कम हो रही है। अब हमारी प्लानिंग उसी तरह से होनी चाहिए। बहुत छोटे एरिया में बारिश के पैटर्न अलग हो रहे हैं। यह काफी patchy हो रही है। दिल्ली में ही एक हिस्से में बारिश हो रही है, और उससे दो किमी दूरी पर बारिश नहीं हो रही है।



मॉनसून के दौरान प्राकृतिक आपदाओं में जान-माल का नुकसान न हो, इसके लिए IMD क्या प्रयास कर रहा है?


जान बचाना IMD की पहली प्राथमिकता है। बीते सालों के दौरान इसमें काफी सुधार भी हुआ है। साइक्लोन के मामले में हम जीरो कैजुअल्टी हासिल कर चुके हैं। हीट वेव में 2015 में हजारों में मौत थी, अब यह सैकड़ों से भी कम है।



जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम व बारिश में किस तरह का बदलाव आया है?

वैश्विक तापमान तेजी से बढ़ रहा है। आंकड़ों की बात करें तो पिछले दस साल में 1.15 डिग्री तापमान बढ़ा है। भारत में भी तापमान बढ़ रहा है। पिछले 100 साल में 0.6 डिग्री तापमान बढ़ा है। प्री-मॉनसून, सर्दियों और मॉनसून में भी तापमान बढ़ रहा है। इसकी वजह से नमी भी बढ़ रही है। नॉर्थ इंडिया, सेंट्रल इंडिया में तापमान बढ़ रहा है। साउथ इंडिया में पहले हीट नहीं थी, अभी हीट ज्यादा है। एक डिग्री तापमान बढ़ने से नमी का स्तर 7% बढ़ता है। नमी का मतलब वातावरण अधिक पानी सोखता है। उत्तर-पूर्वी भारत में बारिश घट रही है, वहीं उत्तर-पश्चिम भारत में जैसे राजस्थान, गुजरात के कच्छ में बारिश अधिक हो रही है। देश में कुल बारिश को देखें तो न इसमें वृद्धि हो रही है, और न कमी हो रही है। इससे पूर्वानुमान को लेकर चुनौतियां बनी हुई है।



मॉनसून पूर्वानुमान को लेकर IMD कितनी सटीकता हासिल कर चुका है और इसमें आगे क्या सुधार संभव हैं?

मौसम विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। हम अपना नेटवर्क बढ़ा रहे हैं। हमारे प्रोग्राम लगभग 40 से 50% बढ़े हैं। मेट्रोलॉजिकल ऑब्जर्वेशन, कंप्यूटिंग सिस्टम और न्यूमैरिकल मॉडलिंग सिस्टम को हमने मजबूत किया और जरूरत के हिसाब से इसको ट्यून किया गया। जलवायु परिवर्तन से भविष्य में कैसे निपटें, इसके लिए भी मौसम जानकारी को ज्यादा एक्यूरेट करने के लिए कोशिश कर रहे हैं। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने देश को ‘मिशन मौसम’ समर्पित किया है। मिशन मौसम के जरिए अगले दो साल के भीतर लगभग दो हजार करोड़ रुपए इन्वेस्ट किए जाएंगे। हमारे पास अभी 40 रडार हैं, उसे 100 करना है। इसके साथ साथ माइक्रो रेडियोमूलर, ऑटोमेटिक सिस्टम में भी सुधार होगा। कम्प्यूटिंग पावर भी बढ़ेगी।

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