लखनऊ: उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक का मुद्दा लगातार प्रभावी रहा है। हर चुनाव में इस वर्ग पर पकड़ बनाने की होड़ तेज हो जाती है। दलित वोट बैंक कभी भी किसी के पाले में एकमुश्त जाता नहीं दिखा है। तमाम विधानसभा सीटों पर जीत-हार में निर्णायक भूमिका निभाने वाले दलित वोटरों को स्थानीय कारकों से साधा जाता रहा है। यूपी चुनाव 2022 में योगी सरकार की दलित कल्याणकारी नीतियों का बड़ा प्रभाव दिखा। मुफ्त अन्न योजना ने इस वर्ग को भाजपा के करीब लाने में भूमिका निभाई। लेकिन, लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान अखिलेश यादव और कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा को पूर्ण बहुमत मिलने के बाद संविधान बदलने और दलितों के आरक्षण को खत्म किए जाने के मुद्दे को प्रभावी तौर पर दलित वोटरों में बैठाने में सफलता हासिल की तो यह वर्ग इंडिया गठबंधन की तरफ झुकता दिखा। हालांकि, विधानसभा चुनाव में यह मुद्दा काम नहीं करने वाला। ऐसे में वोट चोरी के मुद्दे को बड़े स्तर पर गरमाने की तैयारी की जा रही है।
दलितों को साधने के लिए दांवसमाजवादी पार्टी ने दलितों को साधने के लिए एक नया दांव चला है और वह 'वोट चोरी' का है। इसके जरिए दलित वर्ग को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है कि उनकी वोट चोरी को केवल सपा ही रोक सकती है। इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि बसपा कमजोर है। बसपा प्रमुख मायावती पर दलितों के मुद्दों को उठाने में असफल रहने का आरोप लगाया जा रहा है। दरअसल, प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा निर्णायक रहा है। बहुजन समाज पार्टी ने लंबे समय तक इस वर्ग पर पकड़ बनाए रखी, लेकिन बदलते हालात ने नए समीकरण गढ़ दिए हैं।
समाजवादी पार्टी ने इस वर्ग को साधने के लिए नई रणनीति के तहत अब 'वोट चोरी रोकने' का अभियान शुरू कर दिया है। सपा का वोट चोरी रोकने का नारा दलित राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश है। यह नारा भावनात्मक अपील के साथ-साथ राजनीतिक रणनीति भी है। लेकिन यह कितना असर डालेगा? इसका फैसला चुनावों में होगा। हालांकि, अखिलेश बदली रणनीति से पीडीए के डी यानी दलित वोट को मजबूत करने की कोशिश में हैं।
आंबेडकर वाहिनी साधेगी रणनीतिअखिलेश यादव के निर्देश पर सपा ने अपने फ्रंटल संगठन आंबेडकर वाहिनी को सक्रिय कर दिया है। इसका मकसद गांव-गांव जाकर चौपाल करना, दलितों को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना और यह संदेश देना है कि चुनाव में उनके वोट अक्सर चोरी हो जाते हैं। अभियान का नारा है, बूथ-बूथ पहरा दो, वोट चोरी रोको। वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती खुद गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में दलित बस्तियों में रात गुजारकर इस अभियान को धार दे रहे हैं।
मिठाई लाल भारती के अनुसार, यह आंदोलन न केवल दलितों को संगठित करेगा, बल्कि भाजपा पर सीधा राजनीतिक वार भी है। सपा नेताओं का आरोप है कि सत्ता पक्ष चुनावी तंत्र का दुरुपयोग कर दलितों की राजनीतिक ताकत को कमजोर करता है। इसके जरिए दलितों की हितैषी बनने की सपा की तैयारी अलग ही है।
बसपा की कमजोरी से ताकतबसपा की घटती पकड़ ने सपा को अवसर दिया है। दलित राजनीति का यह खालीपन सपा भरना चाहती है। पीडीए यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक समीकरण को मजबूत करने के लिए सपा ने 'वोट चोरी' को नया चुनावी हथियार बना लिया है। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के बाद वोट बचाओ दलित राजनीति का नया नारा बनता दिख रहा है। सपा इस एजेंडे को हवा देकर दलित राजनीति के केंद्र में खुद को स्थापित करना चाहती है।
कांग्रेस से ली है प्रेरणादिलचस्प है कि 'वोट चोरी' का मुद्दा पहली बार बिहार चुनाव में उठा है। राहुल गांधी ने इसे विपक्षी एकजुटता का आधार बनाया। अब अखिलेश यादव उसी तर्ज पर इसे उत्तर प्रदेश में उतार रहे हैं। फर्क यह है कि यहां यह एजेंडा बसपा के कमजोर होने और भाजपा के खिलाफ बढ़ते असंतोष के बीच दलितों को संगठित करने की कोशिश है।
सपा की यह रणनीति साफ तौर पर 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई गई है। बूथ स्तर तक दलितों को जोड़ने का अभियान अगर सफल हुआ, तो सपा न केवल बसपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाएगी। अखिलेश यादव की यह रणनीति भाजपा को भी कड़ी चुनौती दे सकती है। (इनपुट: आईएएनएस)
दलितों को साधने के लिए दांवसमाजवादी पार्टी ने दलितों को साधने के लिए एक नया दांव चला है और वह 'वोट चोरी' का है। इसके जरिए दलित वर्ग को यह भरोसा दिलाने की कोशिश की जा रही है कि उनकी वोट चोरी को केवल सपा ही रोक सकती है। इसके पीछे का कारण बताया जा रहा है कि बसपा कमजोर है। बसपा प्रमुख मायावती पर दलितों के मुद्दों को उठाने में असफल रहने का आरोप लगाया जा रहा है। दरअसल, प्रदेश की राजनीति में दलित वोट बैंक हमेशा निर्णायक रहा है। बहुजन समाज पार्टी ने लंबे समय तक इस वर्ग पर पकड़ बनाए रखी, लेकिन बदलते हालात ने नए समीकरण गढ़ दिए हैं।
समाजवादी पार्टी ने इस वर्ग को साधने के लिए नई रणनीति के तहत अब 'वोट चोरी रोकने' का अभियान शुरू कर दिया है। सपा का वोट चोरी रोकने का नारा दलित राजनीति को नई दिशा देने की कोशिश है। यह नारा भावनात्मक अपील के साथ-साथ राजनीतिक रणनीति भी है। लेकिन यह कितना असर डालेगा? इसका फैसला चुनावों में होगा। हालांकि, अखिलेश बदली रणनीति से पीडीए के डी यानी दलित वोट को मजबूत करने की कोशिश में हैं।
आंबेडकर वाहिनी साधेगी रणनीतिअखिलेश यादव के निर्देश पर सपा ने अपने फ्रंटल संगठन आंबेडकर वाहिनी को सक्रिय कर दिया है। इसका मकसद गांव-गांव जाकर चौपाल करना, दलितों को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना और यह संदेश देना है कि चुनाव में उनके वोट अक्सर चोरी हो जाते हैं। अभियान का नारा है, बूथ-बूथ पहरा दो, वोट चोरी रोको। वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मिठाई लाल भारती खुद गाजीपुर और चंदौली जैसे जिलों में दलित बस्तियों में रात गुजारकर इस अभियान को धार दे रहे हैं।
मिठाई लाल भारती के अनुसार, यह आंदोलन न केवल दलितों को संगठित करेगा, बल्कि भाजपा पर सीधा राजनीतिक वार भी है। सपा नेताओं का आरोप है कि सत्ता पक्ष चुनावी तंत्र का दुरुपयोग कर दलितों की राजनीतिक ताकत को कमजोर करता है। इसके जरिए दलितों की हितैषी बनने की सपा की तैयारी अलग ही है।
बसपा की कमजोरी से ताकतबसपा की घटती पकड़ ने सपा को अवसर दिया है। दलित राजनीति का यह खालीपन सपा भरना चाहती है। पीडीए यानी पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक समीकरण को मजबूत करने के लिए सपा ने 'वोट चोरी' को नया चुनावी हथियार बना लिया है। राजनीतिक विश्लेषक वीरेंद्र सिंह रावत का कहना है कि संविधान बचाओ और आरक्षण बचाओ के बाद वोट बचाओ दलित राजनीति का नया नारा बनता दिख रहा है। सपा इस एजेंडे को हवा देकर दलित राजनीति के केंद्र में खुद को स्थापित करना चाहती है।
कांग्रेस से ली है प्रेरणादिलचस्प है कि 'वोट चोरी' का मुद्दा पहली बार बिहार चुनाव में उठा है। राहुल गांधी ने इसे विपक्षी एकजुटता का आधार बनाया। अब अखिलेश यादव उसी तर्ज पर इसे उत्तर प्रदेश में उतार रहे हैं। फर्क यह है कि यहां यह एजेंडा बसपा के कमजोर होने और भाजपा के खिलाफ बढ़ते असंतोष के बीच दलितों को संगठित करने की कोशिश है।
सपा की यह रणनीति साफ तौर पर 2027 के विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखकर बनाई गई है। बूथ स्तर तक दलितों को जोड़ने का अभियान अगर सफल हुआ, तो सपा न केवल बसपा के पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगाएगी। अखिलेश यादव की यह रणनीति भाजपा को भी कड़ी चुनौती दे सकती है। (इनपुट: आईएएनएस)
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