बिहार में वोटर लिस्ट रिवीजन पर चर्चा की मांग को लेकर संसद में सरकार और विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है। कोई भी पक्ष झुकने को तैयार नहीं दिख रहा। लेकिन, इसका असर संसद के कामकाज पर पड़ रहा है। दोनों सदनों का कीमती वक्त हंगामे में जाया हो रहा है और यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। पिछले वर्षों में इस तरह की गतिविधियां आम हो गई हैं।
नियमों का टकराव: विपक्ष चाहता है कि सरकार Special Intensive Revision यानी SIR पर चर्चा कराए। लेकिन, सरकार नियमों का हवाला देकर कह रही है कि चुनाव आयोग स्वायत्त संस्था है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए चर्चा नहीं हो सकती। जवाब में, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भी 2023 की एक रूलिंग निकाल कर उपसभापति को पत्र लिख दिया है। दोनों पक्ष नियमों के सवाल पर अड़े हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ये नियम सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाए गए हैं, न कि कामकाज ठप कराने के लिए।
विवादों में प्रक्रिया: मॉनसून सत्र शुरू होने के पहले ही अंदाजा था कि SIR पर हंगामा होगा। इसके पीछे विपक्ष की अपनी आशंकाएं हैं। शुरुआत से ही यह प्रक्रिया विवादों में रही है। आधार और वोटर कार्ड को मान्य डॉक्युमेंट्स में शामिल न करने से लेकर बड़ी संख्या में लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर निकालने तक, कई पेच फंसे हैं इसमें। चुनाव आयोग ने संशोधित वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी कर दिया है और इसमें 65 लाख नाम हटाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों की पूरी जानकारी मांगी है।
रचनात्मक बहस। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले दिनों कहा था कि अगर विपक्षी दलों का हंगामा जारी रहता है, तो देशहित में सरकार के सामने विधेयक पारित कराने की मजबूरी होगी। लेकिन, लोकतंत्र के लिए यही बेहतर होगा कि दोनों पक्ष सदन का इस्तेमाल रचनात्मक बहस के लिए करें।
सरकार करे पहल। खैर, चुनाव आयोग SIR की जरूरत को बता चुका है और शीर्ष अदालत ने भी उसे माना है। वहीं, इस पर चर्चा की मांग को लेकर सत्ता पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है तो बातचीत से इसका हल निकालना होगा ताकि संसद का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। लोकतंत्र में सदन चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। उसे अपना यह दायित्व समझना चाहिए।
नियमों का टकराव: विपक्ष चाहता है कि सरकार Special Intensive Revision यानी SIR पर चर्चा कराए। लेकिन, सरकार नियमों का हवाला देकर कह रही है कि चुनाव आयोग स्वायत्त संस्था है और मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, इसलिए चर्चा नहीं हो सकती। जवाब में, राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे ने भी 2023 की एक रूलिंग निकाल कर उपसभापति को पत्र लिख दिया है। दोनों पक्ष नियमों के सवाल पर अड़े हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ये नियम सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए बनाए गए हैं, न कि कामकाज ठप कराने के लिए।
विवादों में प्रक्रिया: मॉनसून सत्र शुरू होने के पहले ही अंदाजा था कि SIR पर हंगामा होगा। इसके पीछे विपक्ष की अपनी आशंकाएं हैं। शुरुआत से ही यह प्रक्रिया विवादों में रही है। आधार और वोटर कार्ड को मान्य डॉक्युमेंट्स में शामिल न करने से लेकर बड़ी संख्या में लोगों को वोटर लिस्ट से बाहर निकालने तक, कई पेच फंसे हैं इसमें। चुनाव आयोग ने संशोधित वोटर लिस्ट का ड्राफ्ट जारी कर दिया है और इसमें 65 लाख नाम हटाए गए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इन लोगों की पूरी जानकारी मांगी है।
रचनात्मक बहस। संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने पिछले दिनों कहा था कि अगर विपक्षी दलों का हंगामा जारी रहता है, तो देशहित में सरकार के सामने विधेयक पारित कराने की मजबूरी होगी। लेकिन, लोकतंत्र के लिए यही बेहतर होगा कि दोनों पक्ष सदन का इस्तेमाल रचनात्मक बहस के लिए करें।
सरकार करे पहल। खैर, चुनाव आयोग SIR की जरूरत को बता चुका है और शीर्ष अदालत ने भी उसे माना है। वहीं, इस पर चर्चा की मांग को लेकर सत्ता पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध बना हुआ है तो बातचीत से इसका हल निकालना होगा ताकि संसद का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। लोकतंत्र में सदन चलाने की जिम्मेदारी सरकार की होती है। उसे अपना यह दायित्व समझना चाहिए।
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