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पश्चिम बंगाल में एसआईआर: राजनीतिक रस्साकशी के बीच क्यों डरे हुए हैं लोग

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@CEOWestBengal पश्चिम बंगाल में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू हो गई है

निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने 27 अक्तूबर को 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर शुरू करने का एलान किया था.

इस एलान के 24 घंटे भी नहीं हुए थे कि पश्चिम बंगाल में कोलकाता के पास पानीहाटी के रहने वाले 57 साल के प्रदीप कर ने अपनी जान ले ली.

ख़बरों के मुताबिक़, उनके आख़िरी खत में लिखा था, 'मेरी मौत के लिए एनआरसी ज़िम्मेदार है.'

बैरकपुर पुलिस कमिश्नरेट के मुताबिक़, प्रदीप के परिवार वालों ने बताया कि वे नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस (एनआरसी) और एसआईआर की ख़बरों की वजह से परेशान थे.

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बैरकपुर के पुलिस कमिश्नर मुरलीधर शर्मा ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "हम इस मामले की जाँच कर रहे हैं. पीड़ित ने कई लोगों के साथ डर और चिंता व्यक्त की थी. इसलिए हम उन लोगों की पहचान करने की प्रक्रिया में हैं जिनसे उन्होंने डर के बारे में चर्चा की थी. हम यह भी जाँच कर रहे हैं कि क्या वे यहीं पैदा हुए थे?"

यह पश्चिम बंगाल में पहला हादसा था जिसका दोष एसआईआर की घोषणा को दिया जा रहा है.

image @CEOWestBengal एसआईआर के लिए बनाए गए हेल्प डेस्क

इसके बाद बीरभूम में 95 साल के क्षितिज मजूमदार ने ख़ुदकुशी कर ली. रिपोर्ट के मुताबिक़, उनके परिवार वालों का कहना है कि उनका नाम साल 2002 की वोटर लिस्ट में नहीं था. उन्हें डर था कि उन्हें बांग्लादेश भेज दिया जाएगा.

बांग्लादेश भेजने को 'पुश बैक' भी कहा जा रहा है. 'पुश बैक' नीति में कथित तौर पर 'अवैध प्रवासियों' को बांग्लादेश वापस भेजा जा रहा है.

हालाँकि, इस नीति पर विवाद भी है. ऐसे आरोप लगाए जा रहे हैं कि इसके ज़रिए भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कुछ समुदायों के भारतीय नागरिकों को निशाना बना रही है.

इसी बीच, कूचबिहार में एक किसान ने भी अपनी जान लेने की कोशिश की. बाद में उन्होंने बताया, "मेरा नाम साल 2002 की वोटर लिस्ट में ग़लत लिखा हुआ था. मुझे डर था कि मेरा नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया जाएगा. इसलिए मैंने अपनी जान लेने की कोशिश की."

इन हादसों के बाद सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 30 अक्तूबर को एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "हम भाजपा की डर और घृणा की राजनीति के दुखद परिणाम देख रहे हैं. चुनाव आयोग की बंगाल में एसआईआर की घोषणा के 72 घंटों के भीतर एक के बाद एक घटनाएँ हुई हैं. पीढ़ियों से बंगाल के लोग गरिमा के साथ जीते आए हैं.''

''आज उन्हें यह पूछने पर मजबूर किया जा रहा है कि क्या वे अब भी अपने जन्मस्थान की मिट्टी से जुड़े हैं. ... इसे किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. मैं हर नागरिक से अपील करती हूँ, किसी भी उकसावे में न आएँ. विश्वास न खोएँ और कोई ऐसा जानलेवा क़दम न उठाएँ.''

''अपने ख़ून की आख़िरी बूँद तक हम जनता के अधिकारों की रक्षा करेंगे और भाजपा व उसके सहयोगियों की उस घृणित साज़िश को नाकाम करेंगे जो हमारे देश की सामाजिक एकता को तोड़ने की कोशिश कर रही है.''

image ANI शमिक भट्टाचार्य का दावा है कि असल भारतीय लोगों पर एसआईआर का कोई असर नहीं होगा

दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "टीएमसी हँसी का पात्र बन गई है. यह उनका एजेंडा है. (मतदाता सूची में) जो डबल और ट्रिपल एंट्री हैं."

"उन्हें लिस्ट से निकाला जा रहा है. पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से घुसपैठिए आ रहे हैं. उन्हें पैन कार्ड और आधार कार्ड दिया जा रहा है. ऐसे लोगों को पश्चिम बंगाल में सपोर्ट मिलता है.''

उनका दावा है, ''जो असली में भारतीय हैं, उन पर कोई असर नहीं होगा. आप बिहार को देख लो, कोई शिकायत आई?"

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एसआईआर नया दौर image Getty Images बिहार में एसआईआर के दौरान कई तरह के विवाद देखने को मिले थे (फ़ाइल फ़ोटो)

पश्चिम बंगाल में पिछली बार एसआईआर साल 2002 में हुआ था. इस बार यह चार नवंबर से शुरू हो चुका है.

पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी मनोज अग्रवाल बीबीसी हिन्दी से कहते हैं, "घबराने की कोई वजह नहीं है. एसआईआर एक सरकारी काम है. यह पहले 8-10 बार हो चुका है. डर का कोई सवाल नहीं. यह तीन महीने की प्रक्रिया है."

"हमारे पास 80,000 से अधिक बूथ लेवल ऑफ़िसर (बीएलओ) हैं जो किसी क्षेत्र के सभी वोटर की जानकारी रखते हैं. वह जानते हैं कि कौन कहाँ रहता है. काम के लिए बाहर गया है या नहीं.''

उनके मुताबिक़, ''बीएलओ क्षेत्र में जाने से पहले (मतदाताओं को) सूचना देंगे. बीएलओ कई बार जा सकते हैं. हमारे पास 294 सब डिविज़नल ऑफ़िसर (एसडीओ) हैं. हमारे पास 24 ज़िला मजिस्ट्रेट और ज़िला चुनाव अधिकारी हैं. हमारे पास चुनाव पंजीकरण अधिकारी हैं. वे मतदाताओं के संदेह दूर करने में मदद कर सकते हैं."

इससे पहले, चुनाव आयोग ने पश्चिम बंगाल में 'वोटर मैपिंग' की प्रक्रिया में पाया था कि मौजूदा वोटर लिस्ट में शामिल लगभग 45 फ़ीसदी नाम साल 2002 की लिस्ट में नहीं थे.

इसके मुताबिक़, सबसे ज़्यादा, पूर्वी मेदिनीपुर की मौजूदा मतदाता सूची में शामिल 68 फ़ीसदी लोगों के नाम साल 2002 की लिस्ट से मेल खाते हैं. दूसरी ओर, पश्चिमी बर्धमान ज़िले में सबसे कम 40 फ़ीसदी नाम मेल खाते हैं.

इसी तरह दक्षिण 24 परगना में 50 फ़ीसदी, उत्तर 24 परगना में 42 फ़ीसदी और कूचबिहार में 46 फ़ीसदी नाम साल 2002 की सूची से मिलते हैं.

इन आँकड़ों की वजह से ही लोगों में डर है कि उनका नाम लिस्ट से हटा दिया जाएगा.

इस सिलसिले में पूछे जाने पर मनोज अग्रवाल का बीबीसी हिन्दी से कहना है, "साल 2002 में एसआईआर के बाद कुल वोटर की संख्या चार करोड़ 58 लाख थी. पश्चिम बंगाल में एसआईआर शुरू होने से पहले 27 अक्तूबर तक वोटिंग लिस्ट फ्रीज़ होने पर कुल वोटर सात करोड़ 66 लाख थे."

उनके मुताबिक़, "बीस साल से ज़्यादा समय गुज़रने पर जनसंख्या वृद्धि तो स्वाभाविक है. यह सिर्फ़ बयानबाज़ी है. जिन वोटर के नाम साल 2002 की लिस्ट में थे, उन्हें कोई अतिरिक्त दस्तावेज़ देने की ज़रूरत नहीं."

"यही नहीं, जिन वोटर के नाम साल 2002 की वोटर लिस्ट में नहीं हैं लेकिन उनके माता-पिता के नाम हैं, उन्हें भी अतिरिक्त दस्तावेज़ जमा करने की ज़रूरत नहीं."

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उनका क्या, जो राज्य या देश से बाहर हैं? image Getty Images विपक्षी नेताओं ने बिहार में ग़लत मौसम में और बिना तैयारी के एसआईआर कराने का आरोप लगाया था (फ़ाइल फ़ोटो)

जानकारों के मुताबिक़, बीएलओ के दौरे के दौरान घर पर मौजूद न रहने वाले लोगों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ सकता है.

इनमें राज्य या देश के बाहर काम करने वाले लोग शामिल हैं. यही नहीं, कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने की बढ़ती कार्रवाई की वजह से साल 1971 के बाद भारत आए बंगाली शरणार्थी या लोग और उनके परिवार वाले भी असुरक्षित महसूस कर सकते हैं.

ख़ासकर वे जिनके माता-पिता और दादा-दादी, नाना-नानी के पास साल 2002 के दस्तावेज़ नहीं हैं. हालाँकि, ऐसी चुनौतियों और बिहार में एसआईआर के दौरान आई शिकायतों से बचने के लिए चुनाव आयोग ने कई क़दम उठाए हैं.

सेंटर फ़ॉर स्टडीज़ इन सोशल साइंसेज़ से जुड़े पॉलिटिकल साइंटिस्ट मैदुल इस्लाम के मुताबिक़, "सामान्य तौर पर तीन तरह के लोग सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे: पहला महिलाएँ, जो शादी के बाद दूसरे घर यानी ससुराल चली गईं. हालाँकि, उनका नाम अभी भी माता-पिता के घर या मायके में है, जहाँ वे शादी से पहले रहती थीं.''

''बीएलओ विज़िट के दौरान इन महिलाओं के मौजूद न होने की बहुत अधिक संभावना है. ज़्यादातर महिलाएँ अपना नाम मूल घर में रखना चाहती हैं क्योंकि पता बदलने से उन्हें हर तरह की संपत्ति खोने का ख़तरा है. ख़ासकर शादीशुदा मुसलमान और दलित महिलाएँ इस मुसीबत में फँस सकती हैं."

"दूसरा समूह बांग्लादेश से आए हिंदुओं का है. संभव है कि वे पिछले कुछ दशकों में आए हों और परिवार में किसी का नाम (मतदाता सूची में) न हो. इसलिए मटुआ समुदाय वास्तव में डरा हुआ है. इन सबका आना 1950 के दशक से हो रहा है लेकिन पिछले 20 सालों में भी बहुत सारे हिंदू प्रवासी आए हैं."

"तीसरा, जिनके व्यक्तिगत विवरण मेल नहीं खाते. डेटा एंट्री में गड़बड़ियाँ भी एक बड़ी समस्या है."

इन सब पर मनोज अग्रवाल का कहना है, "हम बिहार से कहीं बेहतर तैयार हैं. हम कड़ी मेहनत कर रहे हैं और कई प्रशिक्षण चल रहे हैं. हम सुनिश्चित करेंगे कि सभी योग्य वोटर सूची में शामिल हों."

"उन लोगों को कोई समस्या नहीं होगी, जो साबित कर सकते हैं कि वे भारत में रह रहे हैं और कहीं बाहर से नहीं आए हैं.''

एसआईआर और विधानसभा चुनाव image Getty Images टीएमसी ने सड़कों पर उतरकर एसआईआर का विरोध शुरू कर दिया है

अगले साल पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं और एसआईआर के मुद्दे पर राजनीति शुरू हो चुकी है.

तृणमूल कांग्रेस आरोप लगा रही है कि अगले साल के चुनाव से पहले एसआईआर कराना, लोगों को वोटर लिस्ट से निकालने की साजिश है.

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी ने 28 अक्तूबर को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था, "यह प्रक्रिया लोगों को शामिल करना नहीं बल्कि हटाना चाहती है. पहले लोग सरकार चुनते थे. अब यह भाजपा सरकार तय करना चाहती है कि कौन वोट देगा और कौन नहीं."

पश्चिम बंगाल भाजपा के अध्यक्ष शमिक भट्टाचार्य बीबीसी से कहते हैं, "हम चाहते हैं, 'डिटेक्ट एंड डिलीट'. लोग कहते हैं कि मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है. किसी भारतीय मुसलमान का इस पर कोई असर नहीं होगा. जो होगा वह 'इंटरनल सिक्योरिटी' के हित में है."

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image Getty Images ममता बनर्जी एसआईआर के ख़िलाफ़ कोलकाता की सड़कों पर उतरीं

तृणमूल कांग्रेस ने चार नवंबर से राज्य भर आंदोलन शुरू कर दिया है. इस दौरान ममता बनर्जी संविधान की किताब के साथ एसआईआर के ख़िलाफ़ रैली में कोलकाता की सड़कों पर नज़र आईं.

इससे पहले, रिपोर्ट के अनुसार टीएमसी ने कार्यकर्ताओं को एसआईआर की प्रक्रिया के दौरान लोगों की मदद के लिए हेल्प डेस्क और कैंप लगाने के निर्देश दिए हैं. बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) से मतदाता सूची की निगरानी करने के लिए कहा गया है. अभिषेक बनर्जी ने पार्टी सदस्यों से कहा है कि बीएलओ को 'एक मिनट के लिए भी' अकेला न छोड़ें.

मालदा और मुर्शिदाबाद जैसे ज़िलों में बंगाल से बाहर जाने वाले मजदूरों की संख्या ज़्यादा है. यहाँ के जिला स्तरीय नेताओं से कहा गया है कि वे प्रवासी मज़दूरों को वापस लौटने और प्रक्रिया पूरी करने के लिए मनाएँ.

दूसरी ओर, पश्चिम बंगाल भाजपा ने भी राज्य भर में 1,000 से अधिक नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) कैंप लगाने की तैयारी शुरू कर दी है.

रिपोर्टों के अनुसार, चुनाव नज़दीक आने के साथ भाजपा ने कार्यकर्ताओं को बंगाल में रहने वाले बांग्लादेशी हिंदू को सीएए के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने के लिए प्रोत्साहित करने को कहा है.

मैदुल कहते हैं, "भाजपा कहती है कि वे सीएए के तहत आएँगे और उनके नाम शामिल किए जाएँगे. लेकिन बांग्लादेश से आए हिंदू प्रवासी समूहों में बहुत बड़ी चिंता है. याद रखें, असम एनआरसी में सबसे ज़्यादा नाम हिंदुओं के हटाए गए थे. ग़लतफ़हमी यह है कि मुस्लिम यहाँ आते हैं. वे तो कहीं और जाते हैं जैसे, मिडिल ईस्ट या ईस्ट एशिया."

बिहार में एसआईआर से जुड़ीं याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मतदाता सूची में शामिल करने के लिए वैध दस्तावेज़ों में आधार कार्ड को शामिल करने के लिए कहा था. क्या इससे पश्चिम बंगाल के लोगों को आसानी होगी?

मैदुल इस्लाम का मानना है कि सबसे कमज़ोर समुदायों के पास आधार कार्ड ही होंगे. लेकिन सवाल बना हुआ है कि क्या चुनाव आयोग आधार को गंभीरता से स्वीकार करेगा.

दूसरी ओर, चुनाव आयोग का कहना है कि आधार नागरिकता का सुबूत नहीं है लेकिन एसआईआर के दूसरे दौर में वोटर लिस्ट के लिए पहचान के सुबूत के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जा सकता है.

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