
"पानी की कटौती और प्रेशर नहीं होने का मतलब है कि अपार्टमेंट तक पहुंचने वाला पानी या तो जल्दी ख़त्म हो जाता है या फिर बिल्कुल भी नहीं मिल पाता."
ईरान की राजधानी तेहरान में रहने वाली एक महिला ने बीबीसी फ़ारसी सेवा को पानी के संकट के बारे में इन्हीं शब्दों में जानकारी दी.
महिला का कहना है, "जब बिजली की सप्लाई बंद हो जाती है तो इंटरनेट और लिफ़्ट भी काम करना बंद कर देते हैं."
अपनी पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर इस महिला ने बताया, "हालात में कोई सुधार नहीं हो रहा है, ख़ासकर गर्मियों में जब वायु प्रदूषण काफ़ी ज़्यादा होता है. अगर घर में कोई बच्चा या बुज़ुर्ग हो तो हालत और भी बुरे हो जाते हैं क्योंकि उन्हें ऐसी स्थिति का सामना कई घंटों तक करना पड़ता है."
पूरे ईरान में पानी के संकट और बिजली की सप्लाई में लगातार आ रही रुकावट लोगों की निराशा बढ़ा रही है.
बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
ईरान की राजधानी तेहरान से लेकर ख़ुज़ेस्तान और सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के गांवों में जनजीवन बुरी तरह प्रभावित है. कई लोगों का कहना है कि यह असहनीय हो गया है.
लगातार पांच साल के सूखे और रिकॉर्ड गर्मी की वजह से तेहरान में नगर पालिका के नल सूखते जा रहे हैं.

यहां जलाशय में पानी की मात्रा ऐतिहासिक रूप से कम स्तर पर है.
इससे नियमित तौर पर बिजली की सप्लाई में बाधा आ रही है, जबकि गर्मी की वजह से लोग परेशान हैं.
- अगर शरीर में ये हैं लक्षण, तो हो सकता है ब्रेन स्ट्रोक, तुरंत जाएँ अस्पताल
- क्या राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा, महागठबंधन के लिए सत्ता की चाबी साबित होगी?
- भारतीय नागरिक बनने के लिए छोड़ी पाकिस्तानी नागरिकता, लेकिन... पढ़िए पाकिस्तान से आईं दो बहनों की कहानी

अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि कुछ ही हफ़्तों में पानी के इस्तेमाल में भारी कमी नहीं की गई तो तेहरान को 'डे ज़ीरो' हालात का सामना करना पड़ सकता है.
ऐसे में लोगों को बारी-बारी से पानी के नल बंद करने होंगे और पानी की सप्लाई स्टैंडपाइप या टैंकर के ज़रिए करनी होगी.
यह चेतावनी साल की शुरुआत में भी दी गई थी और इसे नियमित तौर पर दोहराया गया.
ये हालात ईरान में अत्यधिक गर्मी और देश के पुराने हो चुके इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड पर दबाव की वजह से देखे जा रहे हैं.
यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट के पानी, पर्यावरण और स्वास्थ्य के निदेशक प्रोफ़ेसर कावेह मदानी ने इस मामले में बीबीसी फ़ारसी से बात की.
उन्होंने कहा, "यह केवल पानी का संकट नहीं है बल्कि पानी के मामले में दिवालिया होना है. इस नुक़सान की भरपाई कर पाना मुश्किल है."

यूएन कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेज़र्टिफ़िकेशन (यूएनसीसीडी) के डेनियल सगाय कहते हैं कि ईरान जल संकट, ज़मीन के कम होते जाने, जलवायु परिवर्तन और शासन के कमज़ोर व्यवस्था के बारे में बताता है.
उनका कहना है कि ये हालात अन्य देशों के लिए कड़ी चेतावनी हैं.
- ग़ज़ा: जानिए कैसे हर पल मौत के साए में काम कर रहे हैं पत्रकार
- इसराइल से जंग रुकते ही ईरान में शुरू हुआ गिरफ़्तारियों और सज़ा-ए-मौत का सिलसिला
- ईरान के अंदर ही नेटवर्क बनाकर कैसे मोसाद ने उसे पहुंचाया नुक़सान

व्यवहारिक तौर पर 'डे ज़ीरो' में अस्पतालों और ज़रूरी सेवाओं को प्राथमिकता दी जाएगी, जबकि घरों को पानी तय मात्रा में मिलेगा.
इसके लिए अधिकारी बारी-बारी से पड़ोसियों के बीच पानी का बंटवारा कर सकते हैं.
ऐसी स्थिति में आर्थिक तौर पर मज़बूत या अमीर लोग तो घर की छत पर पानी की टंकी लगवा सकते हैं, लेकिन ग़रीब लोगों को संघर्ष करना पड़ेगा.
ईरान के पर्यावरण विभाग के उप प्रमुख रह चुके प्रोफ़ेसर कावेह मदानी कहते हैं, "इंसानों के व्यवहार में काफ़ी लचीलापन होता है और वो हालात के मुताबिक़ फ़ौरन ही ख़ुद को ढाल लेंगे. लेकिन मेरी बड़ी चिंता यह है कि अगर आने वाला साल भी सूखा रहा तो अगली गर्मी इससे भी कठिन होगी."

बीबीसी ने ईरान के विदेश मंत्रालय, लंदन स्थित दूतावास और कॉन्सुलेट से देश में पानी के संकट को लेकर बनाई गई योजना के बारे में पूछा है.
लेकिन उन्होंने बीबीसी के ई-मेल और दूतावास तक भेजी गई चिट्ठियों का कोई जवाब नहीं दिया है.
जलाशयों में पानी का गंभीर संकटतेहरान में क़रीब एक करोड़ लोग रहते हैं और यह ईरान का सबसे बड़ा शहर है. यह पानी के लिए पांच प्रमुख बांधों पर निर्भर है.
इनमें लार बांध के प्रबंधन में लगी कंपनी के मुताबिक़ यह तक़रीबन सूख चुका है और पानी के सामान्य स्तर के महज़ एक फ़ीसदी पर काम कर रहा है.
ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेज़ेश्कियान ने लोगों से बिजली के इस्तेमाल में कम से कम 20 फ़ीसदी कटौती करने की अपील की है.
आधिकारिक आंकड़ों में पिछले साल जुलाई महीने की तुलना में इस साल मांग में 13 प्रतिशत की कमी देखी गई.
लेकिन अधिकारियों का कहना है कि इसमें और 12 प्रतिशत की कटौती की ज़रूरत है ताकि सितंबर और अक्तूबर महीने में सप्लाई को जारी रखा जा सके.
तेहरान में सरकारी इमारतों और अन्य जगहों को नियमित तौर पर बंद रखा जा रहा है ताकि बिजली बचाई जा सके. इससे कारोबार को आर्थिक नुक़सान की शिकायतें मिलने लगी हैं.
- कॉलेज पासआउट के लिए पहली जॉब पाने में दिक्कतें, किस तरह की स्किल्स हैं ज़रूरी
- दिल की बीमारियों को तुरंत पहचान लेगी ये तकनीक
- अफ़ग़ानिस्तानः भूकंप के बाद 17 झटके, "वो रात किसी क़यामत जैसी लग रही थी"


आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, बीते कई साल के औसत को देखें तो पिछले साल क़रीब 40-45 फ़ीसदी कम बारिश हुई है.
कुछ इलाक़ों में तो इसमें 70 प्रतिशत से ज़्यादा कमी आई है, लेकिन जलवायु इस संकट की एकमात्र वजह है.
मदानी कहते हैं, "यह पानी का संकट नहीं है. यह पानी के मामले में दिवालिया हो जाना है. यह एक ऐसा नुक़सान है, जिसकी पूरी तरह भरपाई नहीं हो सकती है और जो प्रयास किए जा रहे हैं वो पर्याप्त नहीं हैं."
ईरान को प्रकृति ने जितना पानी दिया है, कई दशकों से उसने इससे ज़्यादा पानी का इस्तेमाल किया है. पहले इसने नदियों और जलाशयों का दोहन किया और फिर अंडरग्राउंड वाटर का.
मदानी कहते हैं, "ये हालात सूखे के कारण ख़ुद-ब-ख़ुद नहीं आए हैं. जलवायु परिवर्तन हालात को और ख़राब करता उससे पहले ही ख़राब व्यवस्था और अत्यधिक इस्तेमाल ने ये हालात पैदा कर दिए हैं."
ईरान के 90 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल खेती के लिए होता है. ख़राब सिंचाई व्यवस्था की इसमें सबसे बड़ी भूमिका है. यहां शुष्क जलवायु (सूखे) वाले इलाकों में धान और गन्ने की खेती होती है.
पानी की बर्बादीकथित तौर पर तेहरान में इस्तेमाल करने लायक पानी का 22 प्रतिशत हिस्सा ख़राब हो चुके पाइप की वजह से लीक हो जाता है. हालांकि, दुनियाभर में पानी की इतनी ही मात्रा बर्बाद होती है.
वाटर न्यूज़ यूरोप के मुताबिक़, यूरोपियन यूनियन में पीने का 25 फ़ीसदी पानी लीक होने की वजह से बर्बाद हो जाता है.
मैकिन्से एंड कंपनी का कहना है कि अमेरिका में इस्तेमाल करने लायक पानी का 14-18 प्रतिशत इसी तरह से बेकार हो जाता है, जबकि कुछ सेवाओं के मुताबिक़, 60 प्रतिशत तक पानी रिसाव से बह जाता है.
सन 1970 के बाद ईरान में ग्राउंड वाटर का भारी मात्रा में दोहन हुआ है. कुछ अनुमानों के मुताबिक़, इसमें 70 प्रतिशत से ज़्यादा की कमी आ चुकी है.
कुछ ज़िलों में ज़मीन हर साल 25 सेंटीमीटर तक धंस रही है, क्योंकि भूजल भंडार (ऐसे छिद्रद्वार पत्थर या प्राकृतिक परतें जिनसे पानी ज़मीन के नीचे बह सकता है) ढह रहे हैं.
इसकी वजह से पानी की कमी ज़्यादा बढ़ गई है.
बिजली की कटौती: सूखे बांधों की वजह से अंधेरा
पानी की कमी से ऊर्जा संकट खड़ा हो गया है.
जलाशय खाली होने से हाइड्रोपावर उत्पादन ठप हो गया है और गैस से चलने वाले प्लांट एसी और पानी के पंपों से बढ़ी मांग पूरी करने में जूझ रहे हैं.
ईरान की सरकारी न्यूज़ एजेंसी इरना ने बताया था कि जुलाई महीने में बिजली की मांग 69 हज़ार मेगावाट तक पहुंच गई थी.
यह क़रीब62 हज़ार मेगावाट की ज़रूरी सप्लाई की मांग से काफ़ी ज़्यादा थी.
यहां हर रोज़ दो से चार घंटे तक बिजली की कटौती आम बात हो गई है.
न्यूज़ रिपोर्ट्स और नेताओं के मुताबिक़, बिजली की कटौती अत्यंत ग़रीब लोगों को सबसे ज़्यादा प्रभावित करती है, क्योंकि केवल अमीर लोगों के पास ही अपना जेनरेटर होता है.
सरकार का क्या कहना है?
ईरान के ऊर्जा मंत्री अब्बास अली आबादी ने कहा है, "पीने का पानी सबसे ज़्यादा ज़रूरी है और यह सभी लोगों को मिलना चाहिए."
पानी बचाने के प्रयासों के बारे में अली आबादी ने कहा, "इस साल जो कदम उठाए गए हैं, उससे हम जितने पानी की ढुलाई करा रहे हैं उसका तीन गुना तक पानी बचाने में कामयाब रहे हैं."
ईरानी सरकार को बिजली की कमी के दौरान एनर्जी इंटेंसिव क्रिप्टोकरेंसी माइनिंग (इलेक्ट्रॉनिक करेंसी उत्पादन) की अनुमति देने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है."
कुछ क्रिप्टो ऑपरेशन्स पर राजनेताओं के साथ संबंध होने का आरोप भी है.
इस मुद्दे पर अधिकारियों का कहना है कि वो अवैध साइट्स को टारगेट कर रहे हैं और बिजली की घरेलू सप्लाई को प्राथमिकता दे रहे हैं.
अली आबादी ने अवैध क्रिप्टोकरेंसी गतिविधियों पर बिजली की सप्लाई को कमज़ोर करने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा, "इस क्षेत्र में काम करने वालों का पता लगाना बहुत मुश्किल काम है."
सड़कों पर असंतोष और विरोध प्रदर्शन
ईरान के कई प्रांतों में ऐसे हालात के विरोध में प्रदर्शन शुरू हो गए हैं, जिनमें ख़ुज़ेस्तान और सिस्तान-बलूचिस्तान शामिल हैं, जहाँ पानी और बिजली की सबसे गंभीर समस्या देखी जा रही है.
प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे हैं कि 'पानी, बिजली और ज़िंदगी' लोगों का मूलभूत अधिकार है.
कुओं और नहरों के सूखने से पर्यावरण के कारण होने वाला पलायन तेज़ हो रहा है.
कई परिवार नौकरी, ज़रूरी सेवाओं और बेहतर बुनियादी ढांचे की तलाश में तेहरान की ओर पलायन कर रहे हैं.
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यह स्थिति तेहरान में अस्थिरता को बढ़ावा दे सकती है, क्योंकि इस शहर को विस्थापित लोगों का ठिकाना बनना पड़ रहा है.

यह संकट अब जियो पॉलिटिक्स का हिस्सा बन गया है.
जून 2025 में इसराइल के साथ हुए संघर्ष के बाद, इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने समुद्री जल को इस्तेमाल के लायक बनाने और रिसाइक्लिंग तकनीकों के बारे में बताया.
उन्होंने ईरानी जनता को संबोधित करते हुए कहा, "जब आपका देश आज़ाद होगा तो आप इन तकनीकों का लाभ उठा सकते हैं."
ईरान ने इन टिप्पणियों को राजनीतिक नाटक करार दिया और मसूद पेज़ेश्कियान ने इसके जवाब में ग़ज़ा के मानवीय संकट की ओर इशारा किया.
यूएनसीसीडी के डेनियल सगाय ने कहा कि केवल ईरान में ही ऐसा संकट नहीं है.
पश्चिमी एशिया में कई वर्षों से चल रहे सूखे ने खाद्य सुरक्षा, स्थिरता और मानवाधिकारों के मुद्दों को कमज़ोर कर दिया है.
यह संकट कृषि, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन, और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है.
दुनियाभर के लिए चेतावनीडेनियल सगाय का कहना है कि दुनिया अब एक ऐसे युग में प्रवेश कर रही है जहाँ सूखे की वजह इंसान ख़ुद हैं. इसका कारण जलवायु परिवर्तन के साथ धरती और पानी का अत्यधिक दोहन है.
उनके अनुसार ईरान इस बात का उदाहरण है कि जब पानी की कमी, ज़मीन का घटते जाना, और कमज़ोर शासन व्यवस्था एक साथ हों तो क्या होता है.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, साल 2000 से अब तक सूखे की घटनाओं में 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है.
अगर मौजूदा हालात जारी रहें तो साल 2050 तक हर चार में से तीन लोग इससे प्रभावित हो सकते हैं.
केप टाउन (दक्षिण अफ्रीका) में साल 2015 से 2018 तक चले सूखे के दौरान, शहर ने प्रति व्यक्ति पानी की सीमा तय कर दी थी और टैरिफ़ बढ़ा दिए थे. इसे कई बार एक कारगर मॉडल माना जाता है.
सगाय कहते हैं, "हमें तकनीकी समाधान पता हैं. ज़रूरत इसकी है कि हम जानकारी को नीति में बदलें और नीति को व्यवहार में. सवाल यह नहीं है कि सूखा आएगा, बल्कि यह है कि कब आएगा."
भविष्य
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका समाधान मौजूद है, लेकिन इसके लिए पानी, ऊर्जा और ज़मीन से जुड़ी नीतियों में फौरन समन्वय बनाकर ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है.
ईरान ने यह वादा किया है कि वह सात साल में 45 अरब घन मीटर पानी की खपत कम करेगा. इसके लिए वह पानी का दोबारा इस्तेमाल, ड्रिप सिंचाई और पानी की सप्लाई में सुधार करेगा.
लेकिन ये महत्वाकांक्षी लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों, ब्यूरोक्रेसी और निवेश की कमी के कारण धीमी गति से आगे बढ़ रहे हैं.
पर्यावरणविद कावेह मदानी कहते हैं, "आख़िरकार ईरान को पानी के दिवालियापन की स्थिति स्वीकार करनी होगी."
"सरकार अपनी नाकामी को स्वीकार करने और एक अलग विकास मॉडल पर ख़र्च करने के लिए क़दम उठाने में जितनी देरी करेगी, पतन से बचने की उम्मीद उतनी ही कम होगी."
वो स्पष्ट तौर पर चेतावनी देते हैं, "यह मौसम तय नहीं करेगा कि तेहरान के नलों में गर्मियों में पानी आएगा या नहीं, बल्कि यह इस बात पर निर्भर करेगा कि प्रशासन कितनी जल्दी क़दम उठाता है."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक, एक्स, इंस्टाग्राम, और व्हॉट्सऐप पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
- 'खाने से ज़्यादा महंगा पड़ रहा है पानी', भीषण गर्मी के बीच गहराता दिल्ली में जल संकट
- प्रयागराज: सड़कों पर चल रही हैं नाव और छतों पर रहने को मजबूर लोग
- भारत क्या सिंधु और बाक़ी नदियों का पानी पाकिस्तान में बहने से रोक सकता है?
You may also like
पंजाब बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए MP से उठे हाथ, अशोकनगर सिख समाज ने एकत्रित की राशि, प्रभावितों से मिलकर सौंपेंगे
AFG vs UAE: ट्राई सीरीज में आख़िरी ओवर के रोमांच में अफगानिस्तान ने यूएई को 4 रनों से हराया
प्रियंका चोपड़ा ने 'लोकाह' के लिए किया खास जश्न
त्रिकोणीय टी20 सीरीज : रोमांचक मैच में आखिरी गेंद पर अफगानिस्तान ने यूएई को हराया
अभिनेता आशुतोष राणा ने किए महाकाल के दर्शन, नंदी हॉल में बैठकर लगाया ध्यान