अफ़ग़ानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्तक़ी गुरुवार को भारत आ रहे हैं.
मुत्ताक़ी के दौरे की पुष्टि करते हुए भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने तीन अक्तूबर को कहा था कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समिति ने मुत्तक़ी को भारत दौरे की छूट दी थी.
दरअसल, मुत्तक़ी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रतिबंधित आतंकवादियों की लिस्ट में शामिल हैं. इसीलिए उन्हें भारत आने के लिए विशेष छूट लेनी पड़ी है.
मुत्तक़ी का भारत दौरा तब हो रहा है, जब ब्रिटिश प्रधानमंत्री किएर स्टार्मर आठ अक्तूबर को दो दिवसीय दौरे पर मुंबई पहुँच रहे हैं.
2021 में अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता पर क़ब्ज़े के बाद तालिबान के विदेश मंत्री का यह पहला भारत दौरा है. अभी तक स्पष्ट नहीं है कि मुत्तक़ी की मुलाक़ात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से होगी या नहीं. मुत्तक़ी भारत दौरे पर कई कारोबारी समूहों से मुलाक़ात करेंगे.
भारत ने अभी तक अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है. पिछले शुक्रवार को विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में तालिबान को मान्यता देने से जुड़े सवाल पूछे गए थे तो मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कोई जवाब नहीं दिया था.
अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान सरकार ने कई ऐसे फ़ैसले लिए हैं, जो मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन से जुड़े हैं. जैसे तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया है.

भारत के प्रमुख अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, मुत्तक़ी को विदेश मंत्री के रूप में पूरे प्रोटोकॉल के साथ सम्मान दिया जाएगा. उनकी मेहमाननवाज़ी सरकार के अधिकारी करेंगे और 10 अक्तूबर को दिल्ली स्थित हैदराबाद हाउस में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर मुत्तक़ी से बात करेंगे.
मुत्तक़ी के भारत दौरे पर अफ़ग़ानिस्तान के मीडिया में भी काफ़ी चर्चा है. अमु टीवी पश्तो भाषा में और अफ़ग़ानिस्तान केंद्रित प्रमुख मीडिया आउटलेट है.
अमु टीवी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''दो सूत्रों ने बताया कि तालिबान विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्तक़ी को उनके नेता हिबातुल्लाह अखुंदज़दा से भारत और रूस दौरे को लेकर विशेष निर्देश मिला था. मुत्तक़ी को इन दोनों दौरों से पहले अखुंदज़दा ने मिलने के लिए कंधार बुलाया था. लेकिन इस बैठक की विस्तृत जानकारी नहीं दी गई. मुत्तक़ी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने भारत दौरे की छूट तो दी थी लेकिन रूस का ज़िक्र नहीं था.''
अमु टीवी ने लिखा है, ''सूत्रों के मुताबिक़ पिछले हफ़्ते शुक्रवार को मुत्तक़ी ने कंधार में अखुंदज़दा से मुलाक़ात की थी. अखुंदज़दा कंधार में ही रहते हैं और यहीं से अहम नीतिगत फ़ैसले लिए जाते हैं. भारत दौरा उस वक़्त हो रहा है, जब हाल के महीनों में मुत्ताक़ी के कई पूर्वनियोजित पाकिस्तान दौरे रद्द हुए हैं. ऐसा अखुंदज़दा की आपत्ति के कारण या लॉजिस्टिकल वजहों से हुआ है.''
''भारत गणतांत्रिक अफ़ग़ानिस्तान समर्थक रहा है और तालिबान से संबंधों को लेकर बहुत सतर्क रहा है. विश्लेषकों का मानना है कि भारत तालिबान के साथ दिलचस्पी सुरक्षा कारणों और पाकिस्तान के साथ लंबे समय से चली आ रही प्रतिद्वंद्विता के कारण दिखा रहा है. पाकिस्तान का तालिबान के साथ क़रीबी का संबंध रहा है.''
अमु टीवीने अपनी एक और रिपोर्ट में लिखा है, ''मई महीने में मुत्तक़ी की बात भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर से हुई थी. इसके अलावा भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी की इसी साल जनवरी महीने में मुत्तक़ी से मुलाक़ात हुई थी. हाल के महीनों में तालिबान के कई अधिकारियों का भारत दौरा हुआ है.''
''तालिबान के दवाई और खाद्य मंत्री हमदुल्लाह ज़ाहिद सितंबर में भारत गए थे और इंटरनेशनल फार्मास्यूटिकल एंड हेल्थकेयर प्रदर्शनी में शामिल हुए थे. सितंबर में जब अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप आया तब भारत ने राहत सामग्री भेजी थी. बाद में ईरान के चाबहार पोर्ट के ज़रिए भी अफ़ग़ानिस्तान मदद पहुँची थी.''
अफ़ग़ानिस्तान की अंग्रेज़ी न्यूज़ वेबसाइट टोलो न्यूज़ ने चार अक्तूबर को प्रकाशित अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि मुत्तक़ी के भारत दौरे में तालिबान को मान्यता देना टॉप एजेंडे में शामिल है.
टोलो न्यूज़ से राजनीतिक विश्लेषक सैयद अकबर सिआल वरदक ने कहा, ''मुझे नहीं लगता है कि भारत तालिबान को अभी मान्यता देगा. भारत इस तरह के किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पहले अन्य मुद्दों को देख समझ रहा है.''
टोलो न्यूज़ ने लिखा है, ''कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि हाल के वर्षों में भारत और अफ़ग़ानिस्तान के संबंधों में कई सकारात्मक चीज़ें हुई हैं. ऐसा माना जा रहा है कि इस दौरे से दोनों देशों के बीच संबंधों के दायरे को विस्तार देने में मदद मिलेगी.''
टोलो न्यूज़ से अंतरराष्ट्रीय संबंधों को विश्लेषक वाहिद फ़ाक़िरी ने कहा, ''इसमें कोई शक नहीं है कि भारत और अफ़ग़ानिस्तान के संबंध सुधर रहे हैं और इसमें काफ़ी तेज़ी आएगी. एक बड़ा कारण है कि अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध ख़राब हो रहे हैं और भारत इस स्थिति को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहा है.''
तालिबान के सत्ता में आए चार साल हो गए हैं और रूस दुनिया का पहला देश है, जिसने तालिबान को मान्यता दी है. इसके अलावा किसी भी देश ने तालिबान को औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है. यहाँ तक कि पाकिस्तान ने भी नहीं.
पाँच अक्तूबर को प्रकाशित एक रिपोर्ट में टोलो न्यूज़ ने लिखा है, ''काबुल में भारतीय दूतावास के विस्तार पर बात हो सकती है. दोनों देश पूर्णकालिक राजदूत की नियुक्ति पर सहमत हो सकते हैं और काउंसलर की मौजूदगी में विस्तार पर भी बात बन सकती है. अगर ऐसा होता है तो दोनों देशों के बीच सीधे संवाद को बढ़ावा मिलेगा.''
टोलो न्यूज़ से राजनीतिक विश्लेषक अज़ीज़ मारिज ने कहा, ''अगर भारत तालिबान को मान्यता देता है तो दूसरे देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि दूसरे देश भारत के फ़ैसले का अनुसरण करने के लिए बाध्य हैं क्योंकि सभी देश अपने हितों को ध्यान में रखकर फ़ैसले लेते हैं.''
मंगलवार को रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोफ़ की ओर से आयोजित मॉस्को फॉर्मेट कंसलटेशंन्स में 10 देश शामिल हुए थे. इसमें भारत का प्रतिनिधित्व रूस में भारत के राजदूत विनय कुमार कर रहे थे.
इसके अलावा मॉस्को फॉर्मेट में अफ़ग़ानिस्तान के लिए पाकिस्तान के विशेष दूत मोहम्मद सादिक़ के साथ चीन, ईरान और मध्य एशिया के देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए. अफ़ग़ानिस्तान से तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताक़ी थे. इस बैठक की जो तस्वीर जारी हुई है, उसमें मुत्ताक़ी तालिबान के सफ़ेद और काले ध्वज के साथ बैठे दिख रहे हैं.
मॉस्को फॉर्मेट के साझे बयान में ट्रंप के उस बयान का विरोध किया गया है, जिसमें उन्होंने बगराम एयर बेस अमेरिका के नियंत्रण में वापस लेने की बात कही थी.
हालांकि बगराम का नाम नहीं लिया गया है लेकिन बयान में कहा गया है, ''अफ़ग़ानिस्तान और पड़ोसी देशों में किसी भी देश के सैन्य ढाँचे की तैनाती की कोशिश स्वीकार्य नहीं है, ख़ास करके तब जब इसका मक़सद क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के हित में ना हो.''
अफ़ग़ानिस्तान के कई लोग तालिबान के प्रति भारत की बढ़ती दिलचस्पी का विरोध भी कर रहे हैं. अफ़ग़ानिस्तान के पत्रकार हबीब ख़ान ने लिखा है, ''डियर इंडिया, तालिबान के अधिकारियों की मेहमाननवाज़ी अफ़ग़ान राष्ट्र के साथ एक धोखा है और उन लड़कियों के मुंह पर तमाचा है, जिनके स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. उस शासन की ख़ुशामदी ना हो जो आतंक और महिलाओं के उत्पीड़न से बना है. दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र इससे कुछ अच्छा कर सकता है.''
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.
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