देश के अगले उप राष्ट्रपति पद के लिए भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन ने सी पी राधाकृष्णन पर दांव लगाया है.
तमिलनाडु से आने वाले राधाकृष्णन वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. 21 अगस्त को वे अपना नामांकन दाखिल करेंगे.
21 जुलाई की देर शाम जगदीप धनखड़ ने उप राष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफ़ा दे दिया था, जिसकी वजह से यह चुनाव हो रहा है. 74 साल के धनखड़ का कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक था.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह नाम दिखने में भले सहज लगे लेकिन इसके पीछे एक बड़ा राजनीतिक गणित है, जो आने वाले चुनावों की दिशा तय कर सकता है.
उनका मानना है कि राधाकृष्णन को उम्मीदवार घोषित कर बीजेपी एक तीर से कई निशाने लगाना चाहती है.
1. तमिलनाडु विधानसभा चुनाव
तमिलनाडु की राजनीति लंबे समय तक द्रविड़ आंदोलन से प्रभावित रही है. पिछले पांच दशकों से राज्य की राजनीति में डीएमके और एआईएडीएमके का दबदबा रहा है.
फिलहाल राज्य की कमान डीएमके के पास है. मुख्यमंत्री एम. के स्टालिन क्षेत्रीय पहचान और भाषा के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर रहते हैं. राज्य में कांग्रेस, डीएमके के साथ खड़ी है.
अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हैं. 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं एनडीए गठबंधन में शामिल एआईएडीएमके को 66 सीटें मिली थीं.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी का कहना है कि पीएम नरेंद्र मोदी काफी समय से तमिलनाडु में सियासी पकड़ मजबूत करने पर ज़ोर दे रहे हैं, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल रही है.
वे कहते हैं, "जब नया संसद भवन बना तो पीएम ने तमिलनाडु के अधीनम मठ से सेंगोल स्वीकार किया और उसे लोकसभा अध्यक्ष के आसन के पास स्थापित किया."
उनका कहना है, "पीएम ने काशी तमिल संगमम् की शुरुआत की. वाराणसी और तमिलनाडु को ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, भाषा और साहित्य के तौर पर जोड़ने की कोशिश की."
वे कहते हैं, "इस कड़ी का अगला प्रयास सी पी राधाकृष्णन हैं, क्योंकि अगले साल तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हैं. राधाकृष्णन वहां की राजनीति में बीजेपी का बड़ा चेहरा हैं. उनकी मदद से वहां सेंधमारी करने की कोशिश की जाएगी."
ऐसी ही बात वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त भी करते हैं. उनका कहना है, "दक्षिण में बीजेपी कर्नाटक से आगे नहीं बढ़ पाई है. राधाकृष्णन की मदद से वह तमिलनाडु में पिछड़ों की राजनीति करना चाहती है."

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सी पी राधाकृष्णन को उप राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने में बीजेपी की ओबीसी राजनीति को भी एक अहम पहलू माना जा रहा है. तमिलनाडु में ओबीसी की आबादी करीब 50 प्रतिशत है.
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त का कहना है कि राधाकृष्णन ओबीसी वर्ग से आते हैं.
वे कहते हैं, "दक्षिण भारत में बीजेपी की पकड़ अभी सीमित है और ऐसे में पार्टी राज्य के ओबीसी वोटरों को आकर्षित करने के लिए इस सामाजिक समीकरण पर जोर दे रही है."
राजनीति के जानकारों का मानना है कि विपक्ष पिछले कुछ समय से ओबीसी का मुद्दा जोर-शोर से उठा रहा है, ऐसे में राधाकृष्णन का नाम काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.
वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, "राहुल गांधी की राजनीति का एक अहम मुद्दा ओबीसी है. वे इसे लेकर बीजेपी पर लगातार हमलावर हैं, लेकिन अब बीजेपी के पास विपक्ष के इस नेरेटिव को तोड़ने के लिए एक और नाम होगा."
वे कहते हैं, "भले उप राष्ट्रपति का चुनाव सीधे जनता से जुड़ा नहीं होता, लेकिन उससे पूरे देश को एक संदेश ज़रूर जाता है. बीजेपी का ज़ोर इस बात पर है कि वह खुद को दिखाना चाहती है कि वह ओबीसी वर्ग की भी पार्टी है."
वहीं वरिष्ठ पत्रकार विनिता यादव का मानना है कि राधाकृष्णन उतना बड़ा नाम नहीं है कि बीजेपी, ओबीसी वर्ग को कोई बड़ा संदेश दे पाए.
वे कहती हैं, "ओबीसी का मुद्दा विपक्ष का है. अब बीजेपी उनकी पिच पर जाकर खेल रही है, लेकिन इससे उन्हें ज्यादा फ़ायदा नहीं मिलेगा."
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वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी का मानना है कि बीजेपी ने उप राष्ट्रपति उम्मीदवार का चयन करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्यान रखा है.
वे कहते हैं, "राधाकृष्णन संघ की पृष्ठभूमि से निकले हैं. संघ का जोर था कि इस बार जगदीप धनखड़ वाली गलती ना की जाए. उस व्यक्ति को ना चुना जाए, जो कोर विचारधारा का ना हो."
उनका कहना है कि 16 साल की उम्र में ही राधाकृष्णन संघ से जुड़ गए थे.
ऐसी ही बात वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त भी करते हैं. उनका मानना है कि राधाकृष्णन को उम्मीदवार बनाने के लिए संघ ने दबाव बनाया है.
वे कहते हैं, "जगदीप धनकड़ मूल रूप से संघ के नहीं रहे. वे कई पार्टियों से होते हुए बीजेपी में पहुंचे. वहीं राधाकृष्णन संघ से निकले और जनसंघ की राजनीति करते हुए बीजेपी में पहुंचे."
उनका कहना है, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार चलाते हुए संघ के लगभग सभी एजेंडों को पूरा कर रहे हैं. चाहे वो वक्फ बोर्ड हो, यूनिफॉर्म सिविल कोड हो या अन्य. संघ अब सत्ता में भागीदारी मांग रहा है, जो उन्हें दी जा रही है."
वे कहते हैं, "मीडिया का एक तबका चलाता है कि पीएम मोदी का जनसमर्थन, संघ से बड़ा हो गया है. सरकार और संघ में बन नहीं रही है, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं है."

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार विनिता यादव ऐसा नहीं मानती. उनका कहना है कि बीजेपी, संघ को खुश करने की कोशिश कर रही है.
वे कहती हैं, "बीजेपी के अध्यक्ष पद पर संघ अपना व्यक्ति चाहता है. ऐसे में बीजेपी ने उप राष्ट्रपति पद के लिए संघ से आने वाले राधाकृष्णन को उतारकर बैलेंस करने की कोशिश की है. हालांकि मुझे लगता है कि सिर्फ इतने से काम नहीं चलेगा."
उनका कहना है, "15 अगस्त के भाषण में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि स्वतंत्रता और स्वाधीनता तो मिल गई है लेकिन अनुकूलता नहीं मिली है. बीजेपी इस तरह के कदम उठाकर अनुकूलता बनाने की कोशिश कर रही है."
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भारत के दो दर्जन से अधिक राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनाव 2024 से पहले बीजेपी का मुकाबला करने के लिए एक गठबंधन बनाया था.
इस गठबंधन में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के साथ-साथ तमाम क्षेत्रीय दल भी शामिल थे. इसका नाम 'इंडिया' गठबंधन रखा गया, जिसका पूरा नाम 'इंडियन नेशनल डेवलपमेंट इनक्लूसिव एलायंस' था.
हालांकि आम आदमी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, राष्ट्रीय लोकदल जैसे दल 'इंडिया' गठबंधन का साथ पहले ही छोड़ चुके हैं.
उप राष्ट्रपति चुनाव में सिर्फ़ संसद के सदस्य (लोकसभा, राज्यसभा) ही वोटर होते हैं, जिसमें चुने गए सदस्य और राज्यसभा के नामित सदस्य दोनों शामिल हैं.
विजय त्रिवेदी कहते हैं, "डीएमके, 'इंडिया' गठबंधन में शामिल है, लेकिन राधाकृष्णन तमिलनाडु से आते हैं. ऐसे में स्टालिन उनका समर्थन कर सकते हैं, जिनकी पार्टी के पास 32 वोट हैं. अगर वे नहीं करते तो बीजेपी इसका इस्तेमाल उनके ख़िलाफ़ करेगी."
वे बताते हैं, "राधाकृष्णन, झारखंड के गवर्नर रहे हैं. उनकी हेमंत सोरेन के साथ अच्छी बनती है. इंडिया गठबंधन में शामिल झारखंड मुक्ति मोर्चा भी इस मामले में खिसक सकती है. संघ की पृष्टभूमि और हिंदू छवि के कारण शिवसेना (उद्धव ठाकरे) पर भी बीजेपी उम्मीदवार का साथ देने का दबाव रहेगा."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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