देश की पश्चिमी सीमा की रक्षक तनोट माता को 'युद्ध की देवी' कहा जाता है। जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास स्थित इस मंदिर (तनोट माता मंदिर) का इतिहास 1965 और 1971 के भारत-पाक युद्ध से जुड़ा है, जब पाकिस्तान ने मंदिर पर 3000 बम गिराए थे, लेकिन एक भी बम नहीं फटा। ऐसा ही चमत्कार 2025 में फिर देखने को मिला है।
एक भी बम नहीं फटा
जब पाकिस्तान ने 'ऑपरेशन सिंदूर' की सफलता का बदला लेने के लिए पश्चिमी सीमा पर सैकड़ों ड्रोन, बम और मिसाइलें दागी, तो भारत की वायु रक्षा प्रणाली ने आसमान में ही उसे रोक लिया और कहीं कोई बम नहीं फटा। जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। हालांकि, बम और मिसाइलों के जो हिस्से जमीन पर गिरे थे, उन्हें सुरक्षा कारणों से सेना के बम निरोधक दस्ते ने एक-एक करके नष्ट कर दिया। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि तनोट माता के चमत्कार के कारण ऐसा हुआ है।
सीमा से 20 किलोमीटर पहले मंदिर
तनोट माता मंदिर जैसलमेर शहर से करीब 120 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर से करीब 5 किलोमीटर पहले माता घंटियाली का दरबार है। इन्हें तनोट माता की छोटी बहन माना जाता है। कहा जाता है कि माता घंटियाली के दर्शन के बाद ही माता तनोट की पूजा स्वीकार होती है। यह मंदिर भारत-पाकिस्तान सीमा से 20 किलोमीटर पहले स्थित है। मंदिर के आसपास 50 से 60 घर बने हुए हैं, जिनमें करीब 300 लोग रहते हैं। लेकिन तनोट माता की वजह से वे सीमा पर खुशी और निडर होकर रह रहे हैं।
पाकिस्तानी कर्नल ने चढ़ाया था छत्र
तनोट माता मंदिर के पुजारी पंडित रवि शेखर उपाध्याय ने बताया कि तनोट माता हिंगलाज माता का अवतार हैं और उन्होंने 1965 के युद्ध में भी चमत्कार दिखाए थे। पाकिस्तान के कर्नल शाहनवाज खान ने भी माता के चमत्कार को देखा था और बाद में उन्होंने माता के दरबार में आने के लिए भारत सरकार से अनुमति ली थी। उस समय वे माता के दरबार में दर्शन करने आए थे और 4 चांदी के छत्र भी चढ़ाए थे। वे सभी छत्र आज भी संग्रहालय में रखे हुए हैं।
बीएसएफ करती है मंदिर की देखभाल
बीएसएफ के डीआईजी योगेंद्र सिंह राठौड़ ने माता के दरबार में माथा टेका और माता का आभार जताते हुए कहा कि देश की सुरक्षा तनोट माता की कृपा से ही संभव है। गठन के बाद से ही इस मंदिर की पूजा और रखरखाव का जिम्मा बीएसएफ के पास है। इस पूजा का फल देखने को मिल रहा है। आज सभी देशवासी जानते हैं कि बीएसएफ क्या कर सकती है और उसने क्या किया है। जब भी मौका आया है, बीएसएफ ने खुद को साबित किया है।
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